मुजफ्फर हुसैन
Ranchi : समंदर में सुनामी है, गलियों में कोहराम, आया मौसम चुनाव का, सब नेता करे प्रणाम। यह हाल इन दिनों झारखंड के प्रत्येक जिले एवं कस्बों का है। जहां कहीं भी थोड़ी-बहुत आबादी है, नेतागण उस आबादी में अपने मतदाताओं को तलाशने लगे हैं। घुटनों में दर्द हो या पैरों में छाले चुनावी नामांकन से पूर्व वह अपने आंकड़े जुटाने में एक-दूसरे को मात देने से पीछे नहीं हैं। इस बार यह चुनाव रोचक इसलिए है क्योंकि झारखंड प्रदेश में इससे पूर्व सोशल मीडिया का उतना इस्तेमाल नहीं हुआ जितना अब हो रहा है। राजधानी रांची तो जैसे चुनावी सोशल मीडिया का केंद्र बन गया है।
छुटभैया नेता भी इस प्लेटफॉर्म का धड़ल्ले से उपयोग कर भावी विधायक का सपना संजो रहे हैं। अनुभवहीन होते हुए भी राजनीतिक समीकरण की बात लगातार दोहराते नजर आ रहे हैं। बिना जनाधार के भावी विधायक का सपना देख रहे इन नेताओं को लगातार छह बार के अनुभवी विधायक चंद्रेश्वर प्रसाद सिंह (सी0पी0 सिंह) कहां और किस कदर फेकेंगे इसका अंदाजा भी उन्हें नहीं है। गौरतलब हो कि सीपी सिंह झारखंड भाजपा से एकलौते ऐसे विधायक हैं, जो 1996 से लगातार रांची विधानसभा से छह बार निर्वाचित हुए हैं। यह झारखंड के किसी भी अन्य भाजपा नेता से सबसे अधिक है। यदि कहा जाये कि सीपी सिंह का रांची विधानसभा में पिछले 28 वर्षों से एकक्षत्र दबदबा रहा है तो ये झूठ नहीं होगा। इन 28 वर्षों में उन्होंने अपने प्रतिद्वंदियों को सिर्फ धोया ही नहीं बल्कि राजनीतिक पगडंडियों में निचोड़ा भी है।
किले में नहीं होने दी कभी सेंधमारी
रांची विधानसभा सीपी सिंह के लिए किसी अभेद किले से कम नहीं है। इस पर उन्होंने कभी किसी को सेंधमारी करने नहीं दी। सीपी सिंह के मुकाबले उनके प्रतिद्वंदी प्रत्येक विधानसभा चुनाव में हांफते नजर आये। भाजपा के कट्टर समर्थक रहे सीपी सिंह को पहली बार 1996 में सफलता मिली। इसके बाद तो उन्होंने सफलता की जैसे झड़ी ही लगा दी। झारखंड गठन के बाद प्रथम विधानसभा चुनाव 2000 में सीपी सिंह ने अपने निकटत्तम प्रतिद्वंदी राजद के जय सिंह यादव को कुल 36,209 मतों के अंतर से हराया। 2005 में उन्होंने अपने निकटत्तम प्रतिद्वंदी आईएनसी के गोपाल प्रसाद साहू को कुल 26,120 मतों के अंतर से पराजित किया। 2009 में उन्होंने अपने निकटत्तम प्रतिद्वंदी आईएनसी के प्रदीप तुलस्यान को कुल 27,111 मतों के अंतर से हराया। 2014 के विधानसभा चुनाव में तो वर्तमान राज्यसभा सांसद महुआ माजी उनसे मुकाबले में हांफती नजर आई। इस चुनाव में सीपी सिंह ने माजी को कुल 58,863 मतों के अंतर से पराजित किया। वहीं, 2019 के विधानसभा चुनाव में महुआ माजी ने सीपी सिंह को कड़ी टक्कर जरूर दी लेकिन परिणाम फिर एक बार सीपी सिंह के पक्ष में रहा और माजी 5,904 मतों के अंतर से हार गईं।
कुल 81 सीटों के लिए होना है चुनाव
लगभग 15 लाख 84 हजार आबादी वाले इस शहर में नवंबर-दिसंबर में चुनाव होना है। वहीं, कुल 81 सीटों के लिए पूरे राज्यभर में चुनाव होगा। इनमें राजधानी रांची का सीट हॉट केक बना हुआ है। प्रत्येक दल इस सीट पर विजयी होना चाहता है। राजधानी में अपनी पकड़ बनाये रखने के लिए भी यह सीट विभिन्न दल जीतने की इच्छा रखते हैं। इनमें झामुमो अग्रणी है। इसके अतिरिक्त आईएनसी, एआईएमआईएम समेत कई निर्दलीय भी कतार में हैं लेकिन उनके लिए राह इतनी आसान नहीं है। कई निर्दलीय की तो गत चुनावों में कई बार जमानत भी जब्त हो चुकी है।
लंबे अनुभव के साथ उतरेंगे
भाजपा प्रदेश कार्यालय में चर्चा जोरों पर है कि सीपी सिंह इस बार विधानसभा चुनाव में अपने लंबे अनुभव के साथ उतरेंगे। पार्टी के विश्वसनीय कार्यकर्ता भी उनके साथ रहेंगे। वैसे भी सीपी सिंह झारखंड सरकार में शहरी विकास, परिवहन, संसदीय कार्य, पंजीकरण, आवास, आपदा प्रबंधन और नागरिक उड्डयन मंत्री पद संभाल चुके हैं। वे 2000 से 2006 तक सत्तारूढ़ दल के मुख्य सचेतक एवं 2006 से 2009 तक विपक्षी दल के मुख्य सचेतक रहे। 2010-2013 तक सीपी सिंह झारखंड विधान सभा के अध्यक्ष भी रहे।
लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज है नाम
सीपी सिंह का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है। उन्हें सार्वजनिक शिकायत प्रबंधन प्रणाली के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। जब उन्हें यह पुरस्कार मिला तो “जनसेवा पोर्टल” पूरे भारत में एकमात्र पोर्टल था, जिसे सिंह ने एक विधायक के रूप में नागरिकों की शिकायतों को ऑनलाइन दर्ज करने और उसका निपटारा करने के लिए शुरू किया था।
झामुमो-आईएनसी करती रही संघर्ष
रांची विधानसभा के लिए आईएनसी 1985 से ही संघर्ष कर रही है। इस सीट पर आईएनसी को अंतिम सफलता 1980 में ज्ञान रंजन के रूप में मिला था। वहीं, झामुमो झारखंड गठन के बाद से ही इस सीट पर सफलता के लिए प्रयास कर रहा है। इस क्रम में उसने 2000 में नवीन चंचल को, 2009 में मो सरफुद्दीन को एवं 2014 और 2019 में महुआ माजी को प्रत्याशी बनाया लेकिन उसके प्रत्याशी भाजपा और सीपी सिंह के सामने चारों खाने चित साबित हुए।
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