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संसद से वक्फ बिल पारित होने के बाद देश के कई हिस्सों में आक्रोश; कांग्रेस, ओवैसी पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

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India News: वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में दो याचिका लगाई गई। बिहार के किशनगंज से कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने यह याचिका लगाई है। बिल पर 2 और 3 अप्रैल को लोकसभा-राज्यसभा में लंबे समय तक चर्चा के बाद पास हुआ था। इसे अब राष्ट्रपति को भेजा जाएगा। उनकी सहमति के बाद यह कानून बन जाएगा। उधर, प्रस्तावित कानून के खिलाफ कई मुस्लिम संगठनों में आक्रोश है। शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद पश्चिम बंगाल, गुजरात, बिहार, झारखंड, तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक, असम में मुस्लिमों ने सडक़ों पर विरोध प्रदर्शन किया। इसमें महिला-बच्चे भी शामिल हैं।

वक्फ संशोधन विधेयक लोकसभा और राज्यसभा से पास होने के बाद कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। उन्होंने विधेयक को चुनौती देते हुए न्यायालय में याचिका दायर की है। मोहम्मद जावेद बिहार के किशनगंज से कांग्रेस सांसद हैं। मोहम्मद जावेद वक्फ को लेकर बनीं जेपीसी के सदस्य भी रहे हैं। याचिका में कहा गया है कि ये बिल मुसलमानों के अधिकारों के साथ भेदभाव करने वाला है। इसके साथ ही ये संशोधन विधेयक संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत समानता के अधिकार, अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धर्म और धार्मिक गतिविधियों के पालन और प्रबंधन का अधिकार, अनुच्छेद 29 में दिए गए अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा का हनन करता है।

वक्फ बिल पर कानूनी लड़ाई

कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने शुक्रवार को कहा कि कांग्रेस पार्टी जल्द ही इस बिल की संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। उन्होंने बताया कि पार्टी पहले ही नागरिकता कानून सीएए, आरटीआई कानून, चुनाव नियमों से जुड़े कानून को सर्वोच्च अदालत में चुनौती दे चुकी है और ये सभी मामले कोर्ट में चल रहे हैं। इसके अलावा पूजा स्थल अधिनियम को भी कांग्रेस की ओर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इस कड़ी में अगला नाम वक्फ संशोधन बिल का जुडऩे वाला है। कांग्रेस पार्टी के अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पहले ही वक्फ संशोधन बिल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का ऐलान कर चुका है। बोर्ड के सदस्य मोहम्मद अदीब ने बुधवार को कहा कि जब तक यह कानून वापस नहीं हो जाता, हम चैन से बैठने वाले नहीं हैं। उन्होंने सरकार पर मुस्लिम संपत्तियों को जब्त करने का आरोप लगाते हुए कहा कि इस कानून के खिलाफ किसान आंदोलन की तरह देशव्यापी विरोध प्रदर्शन होगा।

सुप्रीम कोर्ट के पाले में गेंद

संसद का काम कानून बनाना है और लोकसभा-राज्यसभा ने अपना काम कर दिया है। अब यह बिल संविधान के मुताबिक है या नहीं यह तय करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पास है। बिल को चुनौती देने वाले और इसका विरोध करने वाले बहुत हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस बिल को संविधान की कसौटी पर तौलेगा और फिर तय करेगा कि यह बिल संवैधानिक है या फिर नहीं है। बिल की खिलाफत करने वाले भी इसे संवैधानिक आधार पर ही कोर्ट में चुनौती देने वाले हैं। ऐसे में बिल प्रावधानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी जा सकता है। विपक्ष का पहला तर्क यह है कि यह बिल धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है और वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिमों की एंट्री उस अधिकार का हनन है। हालांकि सरकार की दलील है कि वक्फ में किसी भी गैर मुस्लिम को जगह नहीं दी गई है बल्कि वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्यों और महिलाओं को शामिल करने का प्रावधान इस बिल में किया गया है। ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि क्या वाकई इस बिल के प्रावधानों से धार्मिक स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का हनन हो रहा है?

वक्फ बाय यूजर हटाने का विरोध

एक अन्य पहलू बिल में वक्फ बाय यूजर को खत्म करना है। इस प्रावधान में कोई भी संपत्ति जिसका लंब अरसे से मस्जिद या कब्रिस्तान के रूप में धार्मिक कार्यों के लिए इस्तेमल हो रहा बगैर किसी दस्तावेज के वक्फ की संपत्ति के दायरे में आएगी। लेकिन सरकार ने अब इसे बदल दिया है। अब किसी भी संपत्ति को वक्फ बनाने के लिए उसके वैध दस्तावेज और रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है। साथ ही 6 माह के भीतर वामसी पार्टल पर भी उस संपत्ति का रजिस्टर्ड कराना होगा। विरोधियों का तर्क है कि इस प्रावधान को हटाकार सरकार मुकदमेबाजी का रास्ता खोल रही है और जमीनों को छीनने का प्रयास कर रही है। मुस्लिम संगठनों का भी मानना है कि कई जमीनें जिनपर मस्जिद या कब्रिस्तान बने हैं, हजारों साल पुरानी हैं और उनके वैध दस्तावेज मौजूद नहीं हैं। ऐसे में इन संपत्तियों पर सरकार कब्जा कर सकती है। हालांकि सरकार ने इस प्रावधान में राहत देते हुए तय किया है कि पुरानी संपत्तियों को इस दायरे में नहीं लाया जाएगा और सिर्फ वह संपत्ति जिनपर पहले ही अदालती मामले चल रहे हैं, उन्हें कोर्ट के फैसले पर छोड़ा जाएगा और सरकार इसमें कोई दखल नहीं देगी।

संघीय ढांचे पर प्रहार का दावा

विरोधियों का एक तर्क यह भी है कि इस बिल से संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचता है। जमीन राज्य का विषय है लेकिन वक्फ बिल में संपत्ति का निर्धारण और रेगुलेशन का अधिकार कलेक्टर को दिया गया है जो कि अधिकारिक तौर पर केंद्र सरकार के अधीन आता है। ऐसे में वह राज्य सरकारों को वक्फ संपत्ति के बारे में फैसले लेने से रोक सकता है। इस प्रावधान को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। ऐसे में अब संसद की बहस से इतर इस बिल का भविष्य अब सुप्रीम कोर्ट में तय होने वाला है। बिल को कोर्ट में चुनौती देना आसान है लेकिन विरोधियों को यह साबित करना होगा कि यह बिल संविधान के दायरे से बाहर है। पहले भी कई कानून ऐसे हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है लेकिन अदालत ने हर बार उस कानून को संविधान के तराजू पर तौलते हुए फैसला सुनाया है। अदालत संसद से पारित हो चुके किसी कानून को तभी खारिज कर सकती है जब वह संविधान के दायरे से बाहर हो और यह देखना सर्वोच्च अदालत का काम है।

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