मुजफ्फर हुसैन
रांची। झारखंड विधानसभा चुनाव चरम पर है। चहुंओर प्रत्याशी अपनी जीत साधने में लगे हैं। अपने तरकश का तीर बड़ी हुनर के साथ जनता के बीच छोड़े जा रहे हैं। उद्देश्य एक ही है जीत। इसके लिए पार्टी और प्रत्याशी जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं लेकिन इस चुनाव के बीच ऐसी घटनाएं भी सामने आई हैं, जो चुनावी प्रक्रिया को बाधित करती प्रतीत होती हैं। संभवत: इसीलिए जिला प्रशासन, चुनाव आयोग, आयकर विभाग समेत कई अधिनस्थ विभागों के कान खड़े हुए हैं और आंखें खुली हैं। उदाहरण के लिए हम यहां दो शैक्षणिक संस्थान को ले रहे हैं। पहला नामकुम स्थित जीडी गोयनका स्कूल जहां इस चुनाव के दौरान छापेमारी की गई और 1.14 करोड़ रुपये नकद बरामद किया गया। यह राशि उप प्राचार्य के कमरे से प्राप्त हुई। वैसे तो इस छापेमारी की तैयारी आधी रात से ही की जा रही थी लेकिन छापेमारी सुबह लगभग 4 बजे शुरू हुई। स्कूल चुटिया निवासी सह भाजपा नेता मदन सिंह की है। मदन सिंह भाजपा के वरिष्ठ नेता माने जाते हैं। पार्टी में कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। उनके बेटे शिवम सिंह वर्तमान में चुटिया मंडल अध्यक्ष हैं। छापेमारी के दौरान मदन सिंह के समर्थक भारी संख्या में स्कूल एवं उनके आवास पर भी पहुंचे थे लेकिन प्रशासन के आगे उनकी एक नहीं चली। वहीं, दूसरा शैक्षणिक संस्थान नामकुम राजा उलातू स्थित वाइबीएन यूनिवर्सिटी है, जिसके अध्यक्ष रामजी यादव के कई ठिकानों पर इस चुनाव के दौरान ही छापेमारी की गई है, जिसमें 67 लाख से अधिक नकद और हीरे का हार समेत 535 ग्राम सोना, 1600 ग्राम चांदी के आभूषण, 73 लाख का एफडी पत्र और बैंक से संबंधित दस्तावेज बरामद किया गया। यहां यह बताना आवश्यक है कि रामजी यादव आजसू पार्टी से जुड़े हैं और मूल रूप से उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। उनके यहां छापेमारी सुबह 8 बजे से शुरू हुई। छापेमारी में शामिल अधिकारी ने इस दौरान कहा था कि रांची के सिल्ली विधानसभा चुनाव में उक्त राशि खर्च होनी थी और चुनाव को प्रभावित किया जाना था। ऐसे मेंं सवाल उठता है क्या काली कमाई के गढ़ बन गये हैं निजी विश्वविद्यालय ? क्या झारखंड को लूटने और चुनाव को प्रभावित करने के लिए इनको किया गया है स्थापित ? शिक्षा का अलख जगाने और शिक्षा को प्रसारित करने वाले ये केंद्र देखते ही देखते कैसे बन गये काली कमाई के अड्डे ? ये सवाल बड़े हैं और गंभीर भी।
दोनों संस्थान अपने स्तर के बेहतर शैक्षणिक संस्थान हैं। शिक्षा का अलख भी जगाया जा रहा है। लेकिन इस छापेमारी से छात्र-छात्राओं पर क्या असर पड़ेगा ? उनकी सोच और उनके भविष्य पर क्या असर पड़ेगा ? अभिभावकों पर क्या असर पड़ेगा ? सवाल तो कई हैं पर जवाब पर सब मौन हैं। दोनों छापेमारी के बाद मामले दर्ज हुए, कुछ हिरासत में भी लिए गए, सर्वविदित है कि केस-मुकदमें भी हुए होंगे लेकिन शैक्षणिक संस्थानों में इस तरह की गतिविधि कतई नहीं होनी चाहिए। यदि हो रही है तो मामला संगीन है और अपने पीछे कई सवाल भी खड़ेेे करती है। इसमेें काेई दो राय नहीं कि इन शैक्षणिक संस्थानों के स्तंभ काली कमाई की बुनियाद पर ही खड़े किए गये हैं और वर्तमान में ये इतने शक्तिशाली हो गये हैं कि चुनाव तक को प्रभावित करने लगे हैं। हो सके ये सब बाद में बेदाग होकर समाज के बीच आ भी जायें लेकिन सच तो यह है कि उसी समाज में इन लोगों ने काली कमाई को लेकर कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं, जाे चिंतनीय है और दुखद भी।