Lucknow : यूपी के मत्स्य पालन मंत्री और निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद ने इंटरव्यू में लोकसभा चुनाव में एनडीए की निराशाजनक प्रदर्शन के बारे में जानकारी दी। मंत्री निषाद ने कहा, मोदीजी द्वारा किए गए कार्यों के बारे में अति आत्मविश्वास और जनता के काम पूरा करने में विफलता के बड़ी वजह थी। इसकारण 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को उम्मीद से कम सीटें मिलीं।

निषाद ने कहा, मेरा समुदाय उनके लिए काम करने में विफल रहने के कारण मुझ पर गुस्सा है। मैं उनसे कहता हूं कि मैं दृढ़ता से उनके लिए और उन मुद्दों के लिए खड़ा हूं, जिन पर हम दृढ़ता से विश्वास करते हैं, लेकिन मैं वर्तमान व्यवस्था का मजबूर नेता हूं।
निषाद ने कहा, एक स्पष्ट कारण यह है कि अधिकारी सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय से जुड़े हुए हैं. पोस्टिंग, ट्रांसफर सब वहीं से होते हैं। पहले परंपरा ऐसी थी कि अगर कोई मंत्री काम नहीं करने वाले किसी अधिकारी के खिलाफ डीएम को लिखता था, तब तुरंत उस अधिकारी का तबादला हो जाता था। हालांकि अधिकांश अधिकारी राज्य के विकास के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन कुछ अधिकारी हैं, जो अभी भी समुदाय के हित के खिलाफ काम कर रहे हैं।

हालांकि, उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘इन चीजों पर संज्ञान लेना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा, सीएम ने हाल ही में एक पूरी पुलिस चौकी को निलंबित किया, लगभग एक दर्जन आईएएस अधिकारियों का तबादला किया, जिससे लोगों को आश्वासन मिला कि कार्रवाई की जाएगी। निषाद ने आम चुनाव से पहले राज्य में बुलडोजर के दुरुपयोग को भी उजागर किया। यह सब तब शुरू हुआ जब जौनपुर में हमारे समुदाय की एक महिला कुछ भूमि विवाद को लेकर पुलिस के पास पहुंची। दोनों पक्षों ने शिकायत दर्ज करायी थी। हालांकि पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की और महिला का घर तोड़ दिया। अधिकारियों ने कानून का सहारा लिया, लेकिन ऐसा निर्णय लेने से पहले उसका पुनर्वास किया जा सकता था। इस मुद्दे पर मेरी पार्टी के कई जमीनी कार्यकर्ता मुझसे नाराज हो गए।

निषाद ने कहा, जमीनी स्तर पर लोगों को लगता है कि एक मंत्री का मतलब सरकार है। पहले ऐसा होता था, लेकिन आज मंत्री कोई काम नहीं करा पाते। मुझे याद है जब मैं जवान था, तब कांग्रेस के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह हमारे घर आते थे और हमारे लोगों का काम करवा देते थे, भले ही आवेदन आधा फटा हुआ कागज पर ही क्यों न रहा हो। यही परंपरा थी।

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