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भारतीय ज्ञान परंपरा की समृद्ध विरासत को संरक्षित करेगा कौटिल्य ज्ञान केंद्र : अतुल भाई कोठारी

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रांची। भारतीय ज्ञान परंपरा की समृद्ध विरासत को संरक्षित एवंं प्रचारित करनेे में कौटिल्य ज्ञान केंद्र की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। भारतीय ज्ञान परंपरा की बौद्धिक और वैज्ञानिक विरासत को उचित स्थान दिलानेे में भी इसका योगदान हाेगा। यह बातें 11 अप्रैल 2025 को शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल भाई कोठारी नेे कही। वह नामकुम राजा उलातू स्थित झारखंड राय विश्वविद्यालय में कौटिल्य ज्ञान केंद्र का बतौर मुख्य अतिथि उद्घाटन कर रहे थे। इस अवसर पर श्री कोठारी ने कहा किसी भी देश का विकास वहां की शिक्षा पर निर्भर करता है। शिक्षा व्यवस्था देश के विकास की आवश्यकताओं के अनुसार होनी चाहिए। दूसरे देशों पर निर्भर होकर कोई राष्ट्र महान नहीं बन सकता। सभी विश्वविद्यालयों को ऐसे पाठ्यक्रम तैयार करनेे चाहिए जो छात्रों को आत्मनिर्भर बनाएं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य भी विद्यार्थियों का समग्र विकास एवं भारतीय ज्ञान परंपरा का प्रत्येक स्तर पर समावेश करना है। उक्त केंद्र का उद्घाटन भारतीय परंपरा के अनुसार किया गया। उद्घाटन से पूर्व अतिथियों द्वारा केंद्र के भवन के समीप रुद्राक्ष का पौधा लगाया गया। उद्घाटन के अवसर पर महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो रमेश भारद्वाज, झारखंड राय विश्वविद्यालय की कुलाधिपति प्रो सविता सेंगर, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के कोषाध्यक्ष सुरेश गुप्ता, अध्यक्ष झारखंड सह कुलसचिव प्रो पीयूष रंजन, संरक्षक न्यास प्रो रमण कुमार झा एवं महेंद्र कुमार सिंह विशेष रूप से उपस्थित थे।

भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़े विभिन्न विषयों पर कार्य करेगा केंद्र

झारखंड राय विश्वविद्यालय की कुलाधिपति प्रो सविता सेंगर ने केंद्र की स्थापना के उद्देश्यों की चर्चा करते हुए कहा कौटिल्य ज्ञान केंद्र के मुख्य संरक्षक अतुल भाई कोठारी होंगे। इसे केंद्र शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास एवं अन्य विश्वविद्यालयों के सामूहिक भागीदारी के प्रयास से संचालित किया जाएगा। उन्होंने कहा यह केंद्र भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़े विभिन्न विषयों, प्राचीन कार्यों, आविष्कारों एवं व्यक्तित्वों से विद्यार्थियों को अवगत कराने, शोध कार्य एवं शोध सामग्री एकत्रित करने, पाठ्यक्रम निर्माण, नीति निर्माण, सतत विकास एवं सामाजिक प्रभाव और भारतीय भाषा विकास पर कार्य करेगा। केंद्र का अपना डिजिटल पुस्तकालय, पांडुलिपि भंडार, शोध प्रयोगशाला, उद्यम एवं सेमिनार कक्ष भी होगा। मौके पर संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो रमेश भारद्वाज ने बताया की केंद्र मातृभाषा, क्षेत्रीय भाषा एवं विलुप्तप्राय भाषा संरक्षण को भी बढ़ावा देने का कार्य करेगा।

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