पथरा गई आंखें, नहीं खुला झारखंड में इसलामिक बैंक
रांची। झारखंड में मुसलमानों की 15 फीसदी आबादी है। इस आबादी का एक बड़ा तबका सफल व्यवसायी है, जो प्रतिमाह लाखों की आमदनी करता है। इन तबकों को राजधानी समेत राज्य के विभिन्न जिलों में प्रमुख कारोबार करते देखा जा सकता है। वहीं, दूसरा तबका मध्यम एवं निम्न वर्गीय मुसलमानों का है, जो आर्थिक रूप से काफी कमजोर हैं। इनकी देखभाल आर्थिक रूप से सक्षम मुसलमान नहीं के बराबर करते हैं। इस स्थिति को देखते हुए भारत सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय ने वर्ष 2014 में झारखंड में इसलामिक बैंक खोलने का निर्णय लिया था। इसके लिए मसौदा तैयार करने की पहल वर्ष 2014 में ही शुरू कर दी गई थी। हालांकि 10 वर्ष बीत चुके हैं बावजूद बैंक तो छोड़ दीजिए इसके मसौदे का पता नहीं है। वर्ष 2014 में अल्पसंख्यक मंत्रालय, भारत सरकार के संयुक्त सचिव राकेश मोहन जी झारखंड दौरे पर आये थे, जब उन्होंने इस बैंक की चर्चा करते हुए कहा था-इस तरह के बैंक धार्मिक दिशा पर चलते हैं। यह बैंक भारत का पहला ऐसा बैंक होगा, जो ब्याज फ्री होगा। इसमें रकम जमा करने वालों को ब्याज नहीं, बल्कि शेयर दिया जायेगा। साथ ही लोग यहां से कम ब्याज पर ऋण ले सकेंगे। झारखंड में यह बैंक अवश्य खुलेगा क्योंकि यहां मुस्लिम आबादी अच्छी है। उन्होंने यह भी कहा था-झाखंड में इसलामिक बैंक खोलने के लिए केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय ने कवायद शुरू कर दी है और अल्पसंख्यक मंत्रालय ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से अनुमति के लिए आवेदन भी दिया है। हालांकि घोषणा के 10 वर्ष और झारखंड गठन के 24 वर्ष गुजर गए लेकिन इसलामिक बैंक नहीं खुला। राज्य के 15 फीसदी मुसलमानों की आंखें पथरा गई बावजूद भारत सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय का ब्लू प्रिंट झारखंड की धारातल पर नहीं उतर सका। अब तो लोग यहां तक कहने लगे हैं कि भारत सरकार के दावे खोखले थे, इसलामिक बैंक खोलने संबंधी मसौदा की बात बेमानी थी।
कैसा होता इसलामिक बैंक
इसलामिक बैंक निजी बैंक की तरह ही होता है। इसमें आधुनिक सुविधायें इसी के अनुरूप होती हैं। बैंक में पैसा जमा करने वालों को ब्याज के बदले शेयर दिया जाता है। बैंक जितना लाभ कमाती है, उसी के अनुरूप खाताधारकों को शेयर का लाभ प्रदान करती है। यह बैंक केवल मुस्लिमों के लिए होता है। वे किसी भी बैंक के माध्यम से इस बैंक में अपनी राशि जमा कर सकते हैं।
कम ब्याज पर मिलता कर्ज