मुजफ्फर हुसैन

रांची। अंजुमन इस्लामिया। रांची जिले के मुसलमानों की एक ऐसी संस्था, जो अपने क्षेत्रांतर्गत मुसलमानों के राजनीतिक, शैक्षाणिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक उत्थान की वकालत करता है। लेकिन इस क्षेत्र के मुसलमानों की यह बदकिस्मती है कि उन्हें अंजुमन इस्लामिया का जितना लाभ मिलना चाहिए था, मिल नहीं सका और वह आज भी इस संस्था की ओर बड़ी बेसब्री से टकटकी लगाये देखते हैं और इसके चुनाव में भाग लेते हैं। देश के प्रथम शिक्षा मंत्री और स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अबुल कलाम आजाद द्वारा स्थापित इस संस्था की नींव 1917 में इसलिए रखी गई थी ताकि यहां के मुसलमानों का सर्वांगीण विकास किया जा सके। आरंभ में कोशिश भी अच्छी की गई। धीरे-धीरे यह अस्तीत्व में आने लगा और एक ठोस संस्था बनकर तैयार हो गई। खजाना भी भर गया। इसके बाद इसे लूटने का दौर शुरू हुआ जो वर्तमान में भी जारी है। इस संस्था को संचालित करने के लिए संचालक दल के प्रत्येक सामाजिक कार्यकर्ता को चुनावी प्रक्रिया से गुजरने की मजबूरी है। इसके लिए जातीय समीकरण साधने में कुछ लोग तो कई सीमाएं तोड़ देते हैं, जिसके कई उदाहरण हैं। चुनाव जीतने के बाद जमीर को कोने में रखकर इसकी नींव खोदी जाती है। कुछ लोग तो जैसे अंजुमन के कई भाग पर जबरन कब्जा कर बैठे हैं और इसे लूट रहे हैं बावजूद इसके मतदाताओं में चुनाव को लेकर भरोसा है कि कोई तो ऐसा व्यक्ति चुनावी प्रक्रिया को चीर कर आयेगा और मुसलमानों के राजनीतिक, शैक्षाणिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक उत्थान की सिर्फ वकालत ही नहीं करेगा बल्कि सच में उसे जमीन पर उतार कर दिखायेगा।

कब होना है अंजुमन इस्लामिया का चुनाव

अंजुमन इस्लामिया की वर्तमान कमिटी का कार्यकाल सितंबर 2025 में पूरा हो रहा है। चुनाव को महज 8 माह शेष हैं। इस दौरान मतदाता सूची पुन: बनाने की बड़ी लंबी जिम्मेवारी चुनाव संयोजक एवं वक्फ बोर्ड पर होती है, जिसके लिए 6 माह भी कम पड़ते हैं। ऐसे में चुनावी प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए लेकिन अब तक इसे लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं है और ना ही वक्फ बोर्ड इस ओर मंथन कर रहा है। गत चुनाव में भी यही हुआ था, जिसके कारण चुनाव 16 महीने विलंब से हुआ था। मामला उच्च न्यायालय तक पहुंच गया था। हर बार यह चुनाव पहेली बन जाता है।

कितने सीटों पर होना है चुनाव

अंजुमन इस्लामिया में कुल 16 पदों के लिए चुनाव हाेना है। इनमें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव एवं संयुक्त सचिव के एक-एक पद के अतिरिक्त मजलिस-ए-आमला (कार्यकारी सदस्य) के 12 सदस्यों के लिए चुनाव होना है। गत चुनाव की बात करें तो इसमें कुल 1635 मतदाताओं में से 1382 मतदाताओं ने मतदान किया था। इस बार होने वाले चुनाव में यह संख्या बढ़ने वाली है।

बायलाॅज बदलना होगी चुनौती

अंजुमन इस्लामिया का बायलाॅज (नियम) सर्वप्रथम 1942 में बनकर तैयार हुआ। तत्कालीन बदलाव को देखते हुए 26 नवंबर 1972 को नया बायलॉज बनाया गया। 1978 में बायलॉज में संशोधन किया गया। मौजूदा समय में यही बायलॉज से अंजुमन संचालित है। इस बीच समाज में कई राजनीतिक, शैक्षणिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक बदलाव हुए हैं। इसलिए मौजूदा बायलॉज में संशोधन अथवा परिवर्तन समय की मांग है जो आगामी कमिटी के लिए चुनौती होगी।

बढ़ी आबादी, नहीं बढ़ा सीमाक्षेत्र

संस्था के मतदाताओं का मानना है कि अंजुमन इस्लामिया का सीमाक्षेत्र अर्थात भौगोलिक दायरा बढ़ना चााहिए। 1917 से 2025 के बीच काफी आबादी बढ़ी है। कई बदलाव हुए हैं। मुसलमानों में राजनीतिक, शैक्षाणिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन हुए हैं। उनकी जिज्ञासाएं बढ़ी हैं, पारिवारिक रहन-सहन बदला है। परिवेश में आकास्मिक परिवर्तन हुआ है। ऐसे में अंजुमन इस्लामिया का सीमाक्षेत्र अर्थात भौगोलिक दायरा बढ़ाकर पूरा रांची जिला किया जाना आवश्यक है लेकिन यह एक बड़ी चुनौती है, जिसे भेद पाना आसान नहीं होगा। इसके लिए दूरदर्शी लोगों को अंजुमन इस्लामिया के कार्यकारिणी में आना होगा।

रमजान कुरैशी, समाजसेवी, रांची

वक्फ बोर्ड से मांग करता हूं कि वह अंजुमन इस्लामिया का चुनाव समय पर करे और नई कार्यकारिणी को मुसलमानों के उत्थान की जिम्मेवारी दे। चुनावी प्रक्रिया में काफी समय लगता है। मतदाता सूची बनाना कड़ी चुनौती है, जिस पर वक्फ बोर्ड को ध्यान देना हाेगा। अंजुमन का दायरा भी बढ़ाया जाना चाहिए।

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